2020 का कोरोना साल और भविष्य के लिए सन्देश

2020 का कोरोना काल और भविष्य के लिए सन्देश
2020 का साल अपने आप में बहुत ही विशेष और बहुत कुछ सीखने वाला साल था ।
इस साल मैंने कुछ अहम बातें सीखी हैं ये बातें इस तरह है। जब 2020 का साल शुरू हुआ तो इसे को लेकर मै बहुत आशान्वित था। मेरे कुछ प्लान थे, कुछ एस्पिरेशंस थी। और बहुत सारे आशावाद को लेकर 2020 के साल के भीतर प्रवेश कर चुका था।
फरवरी में मेरे भाई ने एक व्हाट्सएप मैसेज किया, जिसमें उसने बताया कि एक ऐसा वायरस है। जो बहुत तेजी से फैलता है। इसलिए सतर्क रहें। इस मैसेज को देख कर मुझे विश्वास नहीं हुआ। और मैंने अपने भाई को यह लिखा कि इस तरह की अफवाहों से दूर रहा करो यार । उसके पास भी फॉरवर्ड मैसेज आया था, इसलिए उसने मेरी बात पर कोई खास रिएक्शन नहीं किया। और बात आई गई हो गई ।
मार्च आते-आते यह खबर फैलने लगी कि कोरोनावायरस का प्रकोप दुनिया के बहुत सारे हिस्सों में दिखने लगा है। और सरकारी लोकडाउन 1,2, और 3 आदि करते करते पूरा साल गुजर गया।
लेकिन इस साल कुछ अहम अनुभव हुए । जिन्हें सबके साथ शेयर करना जरूरी समझता हूं।
पहला अनुभव तो यह हुआ की दुनिया जिस तरह से चल रही है। जरूरी नहीं है कि आगे भी वैसे ही चलती रहेगी। असल में जिसे हम दुनिया कहते हैं, उसे बहुत सारी चीजें प्रभावित करती हैं। हमारी दुनिया में भले ही हम अकेले हैं, हमारा परिवार है, हमारे कुछ दोस्त हैं। लेकिन हमारी जिंदगी को ;वैश्विक पृष्ठभूमि, आर्थिक हालात ,राजनीतिक सरगर्मियां, सीधे तौर पर प्रभावित करती हैं । इसीलिए शायद कहा गया है दुनिया पीतल की है। जो सोने की तरह है लेकिन असल में पीतल है।
इसी वजह से मुझे लगा कि किसी भी व्यक्ति के पास अपने परिवार को चलाने के लिए, और अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए एक स्थाई आर्थिक प्रबंध होना बहुत जरूरी है। और यह जो स्थाई प्रबंध है; यह बहुत ज्यादा कर्जे से प्रभावित नहीं होना चाहिए।
कोरोना के दौरान आपने देखा कि जिन लोगों ने अपनी अर्थव्यवस्था कर्जे के माध्यम से चला रखी थी ।और जो भविष्य को लेकर बहुत आशान्वित थे ,उन लोगों की आर्थिक हालत बहुत कुछ खराब हो गई। इसलिए मैं समझता हूं कि कोई परमानेंट फाइनेंस सिस्टम जरूर होना चाहिए। चाहे फिर वह नौकरी हो, छोटा-मोटा धंधा हो, या फिर कोई और चीज हो। आर्थिक सिस्टम जो कुछ भी है वह असल में बहुत हद तक आर्थिक कर्जे से मुक्त होना चाहिए।
दूसरी बात जो मेरे समझ में आई वह यह थी, कि हम सभी लोग कहीं ना कहीं किसी न किसी रूप में स्वास्थ्य गत समस्याओं से जूझते रहते हैं। हमारी इम्युनिटी का स्तर अलग अलग होता है। किसी की इम्युनिटी कम है, किसी की ठीक-ठाक है। हम सामने से देखने पर भले ही स्वस्थ लगे लेकिन हमारी इम्यूनिटी कमजोर भी हो सकती हैं ,सामान्य भी हो सकती है ,और मजबूत भी हो सकती है।
और इम्यूनिटी को प्रभावित करने वाले कारक हमारे आसपास ही मौजूद होते हैं। मसलन हम खाना किस प्रकार का खा रहे हैं। हम कितने घंटे सो रहे हैं ।हम तनाव से कितने मुक्त हैं। हम स्वास्थ्य के प्रति क्या दृष्टिकोण रखते हैं ।आदि आदि ।इसीलिए मैं समझता हूं कि हमें अपने व्यक्तिगत जीवन को , जिसके अंतर्गत हमारा शारीरिक स्वास्थ्य आता है। उसे यथासंभव स्वस्थ रखना चाहिए ।
खाना अच्छा है या बुरा है जो इस बात पर डिपेंड करता है कि अंततः वह खाना हमारे स्वास्थ्य को किस तरह से प्रभावित करते करता है। सीधी भाषा में समझाया जाए तो ; क्या आपका खाना आपके इम्यूनिटी को बनाए रखने में मदद करता है ? या फिर आपकी इम्युनिटी को कमजोर करेगा?
इसी आधार पर हमें खाने का चुनाव करना चाहिए ।खाने के साथ , हमारी जीवन शैली कितनी खुश हाल है, इस बात पर भी हमें ध्यान देना चाहिए।
मसलन हम 1 दिन में कितना शारीरिक परिश्रम कर रहे हैं ? 1 दिन में हम कितना हंस रहे हैं ? 1 दिन में हमारे आसपास कितनी समस्याएं सॉल्व हो कर चली जाती हैं ?
यह चीजें भी हमारी दिनचर्या को, हमारी इम्यूनिटी को स्वस्थ बनाते हैं।
हमारी दिनचर्या, हमारा दैनिक अभ्यास ,और हमारी इम्यूनिटी असल में आपस में जुड़ी हुई चीजें हैं ।और जब आज हम देखते हैं की इम्युनिटी के लेवल से अगर किसी व्यक्ति को या किसी समाज को नापा जाए, तो निष्कर्ष से निकलेगा कि आधे से ज्यादा समाज इम्युनिटी के स्तर पर कमजोर है।
कोरोना का जो रूप शुरू में आया था। तब हमें बताया गया था कि ये एक संक्रामक बीमारी है, बहुत तेजी से फैलती है ,और इससे बचना बहुत मुश्किल है । लेकिन धीरे-धीरे यह बात बिल्कुल साफ हो गई कि जिस व्यक्ति की इम्युनिटी अच्छी है, वह इस बीमारी के प्रकोप से निकल जाएगा । या बच जाएगा। इम्यूनिटी को डिफेंड करने वाले जो तत्व है ; चाहे खानपान हो, फिजिकल वर्क ,हो सोना जागना हो ,या अपने आप को ठीक से संधारित करना हो , इन सारी चीजों को हमें अपने दैनिक जीवन में शामिल करना ही पड़ेगा । और अगर हम इन्हें शामिल नहीं कर पाते हैं ! या इस तरफ पूरी सक्रियता के साथ ध्यान नहीं दे पाते हैं ! तो हम गलती करेंगे ।
कोरोनावायरस के आर्थिक और स्वास्थ्य जनक तत्वों के साथ-साथ 2020 ने यह भी समझाया है , कि स्वास्थ्य सिर्फ शारीरिक ही नहीं होता है । स्वास्थ्य का एक और महत्वपूर्ण पक्ष उसका मानसिक पक्ष भी होता है। मानसिक स्वास्थ्य को लेकर हमारे यहां तरह-तरह की भ्रांतियां और दुष्प्रचार है। अव्वल तो यह है की मानसिक स्वास्थ्य का नाम आते ही हम उसे सीधे सीधे तौर पर उसे मानसिक बीमारी से जोड़ लेते हैं।
मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल करने के लिए हमारे पास कोई वैज्ञानिक प्रक्रिया प्रचलित नहीं। है मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जो अध्यात्म की शरण में जाना होता है, धर्म और प्रार्थना की मदद लेना होता है, यह प्रचलित तरीके भी मानसिक स्वास्थ्य को वैज्ञानिक और संपूर्णता के साथ ठीक तरह से संभाल नहीं पाता है।
मानसिक स्वास्थ्य को लेकर इन सारी धारणाओं, पारंपरिक समझ, और प्रैक्टिस को छोड़कर हमें सीधे-सीधे विज्ञान का सहारा लेना होगा । जहां हम किसी व्यक्ति को एक प्रोसीजर के तहत उसके मानसिक डिप्रेशन ,मानसिक अवसाद आदि से मुक्त करवाने में मदद उपलब्ध करवा सकें।
हम मानसिक स्वास्थ्य की बात क्यों कर रहे हैं ? क्योंकि कोरोनावायरस की वजह से बने दबाव , अवसाद और चिंता बड़े हैं। और यह इतने सूक्ष्म रूप से महत्वपूर्ण हैं, कि हम ठीक ठीक तरह से समझ नहीं पा रहे है।
मेरे सामने कई उदाहरण हैं जहां बहुत ही डिसेंट जॉब सैलरी पाने वाले लोग इसके शिकार हुए हैं। सरकारी कर्मचारी भी इसके शिकार हुए हैं। बिजनेसमैन शिकार हुए हैं। घरेलू महिलाएं शिकार हुई है। छोटे बच्चे भी कहीं ना कहीं प्रभावित हुए हैं।
2020 का यह अनुभव भी है कि , मानसिक स्वास्थ्य को लेकर भी व्यक्तिगत रूप से और सामूहिक रूप से हमें सोचना पड़ेगा। मानसिक स्वास्थ्य हमारी जिम्मेदारी है । जिसका हमें खास तौर पर ख्याल रखना पड़ेगा ।
2020 समाजशास्त्र के लिहाज से भी एक नई तरह का साल है। ।इस साल व्यक्ति सामाजिक तौर पर भी संघर्ष की स्थिति में है। जहां वह अपनी पहचान के संकट को दोबारा से पलट कर देख रहा है। जहां वह अपनी सामाजिक उपस्थिति को लेकर असमंजस में है। इसलिए हाथ से हमें यह भी देखना पड़ेगा कि व्यक्ति और समाज के बीच में जो अंतर संबंध है, वह संबंध न तो व्यक्ति की तरफ बहुत ज्यादा झुका होना चाहिए।
और न समाज की तरफ उसका बहुत अधिक झुकाव होना चाहिए। असल में व्यक्ति और समाज के अंतर्संबंध को यथासंभव संतुलन की अवस्था में होना ही चाहिए। कोरोना काल में हमने देखा कि सामाजिक व्यवस्थाओं में बदलाव आने लगा है। आपस में मिलना जुलना ,शादी विवाह ,आदि की प्रक्रिया करना , समारोह का आयोजन करना , आदि कार्यों में अंतराल बढ़ने लगा है। इसी वजह से व्यक्ति समूह में अपनी प्रासंगिकता को लेकर उहापोह की अवस्था में खुद को पाने लगा है। व्यक्ति और समाज के इन अंतर संबंधों को वापस सामान्य रूप से अवस्था प्राप्त करने में समय लगेगा ही लगेगा। इस दरमियान मेरी सलाह होगी कि व्यक्ति धीरे-धीरे और प्राकृतिक तौर पर समाज का हिस्सा बने। लेकिन अपनी व्यक्तिनिष्ठता को भी संतुलित रूप से बनाए रखें।
2020 में सबसे कम ध्यान जिस और गया है वे दो वर्ग है। बालक वर्ग और वृद्ध वर्ग। यह कितने आश्चर्य की बात है , कि कोरोना का सबसे ज्यादा प्रभाव बच्चों और बड़ों में माना गया। वैज्ञानिकों ने बताया कि बच्चे और बूढ़े कोरोना के सबसे आसान शिकार हो सकते हैं । लेकिन सोसाइटी के रूप में बच्चों और वृद्धजनों पर जो प्रभाव पड़े हैं, उनकी तरफ हमारा ध्यान बहुत कम गया है ।
साधारण सी बात है कि बच्चों की स्कूल इन बंद हो गई है। पिछले 8 महीने से वे घर पर हैं। हम टीवी ,मोबाइल आदि माध्यमों से उन्हें इंगेज तो किए हुए हैं । लेकिन ठीक ठीक तरह से बच्चों का रचनात्मक इंगेजमेंट लगभग गायब है। यही स्तिथि वृद्धों के साथ भी है। वृद्धों को असल में हमने इस बीमारी के प्रभाव से छुपा तो लिया है। लेकिन उनकी दिनचर्या ,उनका आना-जाना आदि 2020 में गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है। ऐसे में आने वाले सालों में बच्चों और घर के बड़े बूढ़ों के प्रति हमारी जिम्मेदारी बनती है ,कि हम उन्हें थोड़ा समय दे। और सामान्य जीवन की तरफ लौटने में उनकी मदद करें।
2020 इस वजह से भी विशेष रहा है क्योंकि इस साल हमने वैश्विक स्तर पर सामाजिक स्तर पर ,आर्थिक स्तर पर, मनोवैज्ञानिक स्तर पर, इस महामारी को झेला है । चाहे हम बच गए हैं । चाहे हमारे घर का हर व्यक्ति उसे प्रभावित नहीं हुआ है। लेकिन हमारी आर्थिक स्थितियां ,हमारे सामाजिक अंतर संबंध, हमारा मनोविज्ञान, आदि इससे प्रभावित जरूर हुए हैं। और आने वाले समय में जब हम लोग सामान्य जीवन को वापस बरतने लगेंगे। तब हमें खास तौर पर इन उपरोक्त बातों का ख्याल रखना पड़ेगा।
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